Monday, December 27, 2010

The Winter Chill and Anubhuti Warmth

सर्दियों का मौसम ग़रीबों के लिए परेशानी का सबब बन कर आता है. कड़ाके की ठण्ड और तन छुपाने के लिए कपडे भी न हों तो स्थिति और भयावह हो जाती है.

जब अनुज और संजीव दिवाली के मौके पर अनुभूति के लिए 25 कम्बल ले कर आये तो हमें इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं था कि कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें  इनकी  ज़रुरत होगी. हमने साजिद भाई से कहा कि वो वाकई needy लोगों की एक सूची बना लें जिस से मदद पहुंचाई जा सके. जब उन्होंने इस काम को शुरू किया तो पाया कि ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें इस मदद की ज़रूरत है.

मोहित भाई ने 50 कम्बल भिजवाये. मनोज भाई ने २०, साजिद शापू साहब ने जम्मू से 25 और Karunendra ने 100 कम्बल अनुभूति को donate किये.

जब हम इनको बांटने पहुंचे तो आंखें नम हो गयीं. वृद्ध महिलाएं और पुरुष जिनकी त्वचा छूट  रही थी, जो ढंग से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे कतार में खड़े थे. साजिद भाई ने अथक परिश्रम कर ऐसी सूची बनाई थी जिसमें हर शख्स वाकई ज़रूरतमंद था. ऐन वक़्त पर कुछ ऐसे लोगों ने भी इन्हें प्राप्त करने की कोशिश की जिन्हें इनकी ज़रुरत नहीं थी. बहुत मान मनुहार कर हमने उन्हें समझाया.

नैथरा, गढ़ी कादर गंज , कादरगंज , नगला खंधारी और नगला तरसी के दो सौ लोगों को समिति ने 26 दिसम्बर को कम्बल वितरित कर उन्हें इस ठण्ड में थोड़ी राहत पहुंचाई है.

ठण्ड थोड़ी कम होते ही हम फिर लौटेंगे एक और health कैंप के साथ, कुछ और दर्द कम करने , कुछ और मुस्कुराहटें जुटाने.

टीम अनुभूति

Those present included Shahid, Babloo, Sajid Malik, Manish Chauhan and  Sanjay Yadav among others.

1 comment:

  1. अंशुमन भाई,

    पिछले १ बरस से अधिक समय में अनुभूति द़ारा कासगंज के पटियाली क्षेत्र में किये गए कार्य सराहनीय तो हैं ही टीम अनुभूति के जज्बे को भी दर्शाते हैं| वो बिरले ही होते हैं जिन्हें कमजोर और निर्बलों के दर्द का एहसास होता है, वो बिरले ही होते हैं जिनमें गरीब, मजलूम और माजूरों के लिये हमदर्दी होती हैं, सामाजिक पायेदान के सबसे निचले दर्जे पर रहने वाले लोगों के लिये काम करने की खुशनसीबी सब को नहीं मिलती | मुझे एहसास है कि इस सफर में कष्ट तो बहुत हैं लेकिन दुआओं की भी कोई कमी नहीं |ये दुआएँ ही इस सफर की मुश्किलों को आसान करेंगी

    तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

    सागर की अपनी क्षमता है
    पर माँझी भी कब थकता है
    जब तक साँसों में स्पन्दन है
    उसका हाथ नहीं रुकता है
    इसके ही बल पर कर डाले
    सातों सागर पार

    तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

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