ठीक एक महीने बाद हम एक और Health Camp आयोजित कर सके। इस से पहले कि किसी नकारात्मक भावना से प्रेरित विचार लिपिबद्ध हों पहले अच्छी अच्छी बातें।
( Beyond Ganges title किसी भी तरह शाहिद भाई की किताब Beyond Contraceptives से प्रेरित नहीं है। हाँ हमारा ये denial ज़रूर गुलज़ार साहब की इस बात से प्रेरित है कि इब्ने बतूता पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का कोई सर्वाधिकार थोड़े ही है। )
शरद भाई की सलाह पर तिलक का नगला को इस camp हेतु चुना गया था. गंगा के उस पार मूल जिले कासगंज या एटा से पहुंचना काफी मुश्किल है , हाँ बदायूं की तरफ से थोडा आसान। इसलिए अलग अलग टीमें अलग दिशाओं से पहुँचीं । बदलाव के इस सफ़र के नए हमराही थे अरुण पाठक ,मनीष जैन और रोहित जैन। साथ ही राजीव राय के सौजन्य से इस बार हमारे साथ थे बुलंद शहर के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डा राजीव अग्रवाल ।
शिविर को सफल ही माना जाय क्योंकि करीब 400 लोगों ने इसका लाभ उठाया। एक बात जो कई साथियों को परेशान करती रही वो थी कुछ एक गाँव वालों का बार बार दवा लेना। अब किसी भी public programme के इन side effects के लिए शायद हमें mentally तैयार रहना चाहिए।
Having said that all of us need to ponder if we are living upto what we had planned. All of us ,when we were not there in the field, had wonderful ideas. But once we are there it seems we have been struck with a drought of ideas. We get up mechanically, do the health camps and return. Is that all?
It is time we do a rethink. We need to spend more time in the area and make more interventions. Interventions that are innovative, that make a difference and that count.
Wish you all Happy Thinking.
Team Anubhuti
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