ये एक कोशिश है अपने साथ भी और जगह के साथ भी कि क्या कोई ऐसी जगह अपने रंग में लोगों को रंग सकती है ?
क्या सपनों को दीवार पर सजाया जा सकता है ?
क्या कल्पनाओं को बाज़ार में सुनाया जा सकता है ?
क्या खुद की नज़र से देखे उन लम्हों को औरों की नजरों का हिस्सा बनाया जा सकता है ?
एसे कई सारे सुझाव और सवाल दिमाग में पहरा देते रहते है लेकिन उनको हकीकत की शक्ल देने में एक लम्बा समय चाहिए. वो लम्बा समय बार-बार ये एहसास दिलाता रहेगा की वक़्त के बदलते काँटों के साथ अगर खुद को बदलने की ज़िद भी जुड़ जाये तो उन बदलते पलों में, मैं खुद को भी पाउँगा . और समय यही चाहता है कि सबको उसकी रफ़्तार से चलना चाहिए. जो छूट गया वो कल वापस नहीं आएगा और अगले कल में खुद को देखना हमको काफी पीछे छोड़ देता है.
लोग कहते है - कछुए की चाल में आलस कम होता है, तेज़ भागने से आप कहीं जाकर रुक जाते हो जहां जाकर आप पीछे छूटने लगते हो...
ये सोचने वाली बात है कि जीवन रचना की रफ़्तार क्या होनी चाहिए ?
मुझे लगता है कि समय हर घडी हमें ये महसूस कराता है कि हमें किस रफ़्तार से चलना चाहिए. हर मोड़ पर संभलने के संकेत देता नज़र आता है समय.
वक़्त-बे-वक़्त बनते किस्सों में आपको शामिल होने के न्यौते देता है तो कभी पिछले किस्सों से मिली नसीहतों को सामने ले आता है और रफ़्तार पर असर छोड़ता है.
ये एक धारणा हम सबके दिमाग में रहती है शायद आपकी धारणा कुछ और हो लेकिन मेरी सोच और मेरे ख्यालात यही कहते है की हमे वक़्त की रफ़्तार से कुछ सीखना चाहिए उसकी गति धीमी ज़रूर है मगर बदलते समय में वो खुद को तरह-तरह से ढाल लेता है - जब लोग कहते है - "यार आज दिन का पता ही नहीं चला, कब खत्म हो गया" या "यार इतनी देर हो गई बैठे-बैठे लेकिन समय है कि कट ही नहीं रहा".
ये समय के अपने कुछ ढांचे हैं जो हमारे साथ तरह-तरह से जीते हैं लेकिन फिर भी लोग उसकी गति और बदलते रूप से कुछ सीख नहीं पाते, अपने बड़े-बुजुर्गों से कहावत के नाम पर सीख का पाठ ज़रूर रट लेते हैं लेकिन समय के साथ चलना नहीं सीख पाते .
शायद में भी आज ही इस गति को सोच रहा हूँ आज से पहले मैं भी इस रफ़्तार से ओझल था जो रोज़ मेरे साथ जीता है मैं उसी को नहीं सोच पा रहा था.
आगे से हम सब समय की रफ़्तार को सोचेंगे और उसके साथ आगे बढ़ने की नीति को अपने जीवन में अपनाएंगे
हमेशा खुद को आगे के लिए तैयार करना है, हर बार आगे बढ़ने को सोचना है जीवन भी आगे बढ रहा है समय भी आगे बढ रहा है तो हम क्यों ठहराव में जियें ? ये हमारी ज़िद होनी चाहिए तभी एक नया सपना पूरा होता दिखाई देगा .
सैफू .
अनुभूति लैब
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