Monday, April 26, 2010

ख़ुसरो हम शर्मिंदा हैं

कई बरसों से अमीर ख़ुसरो महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ था इसलिए जब कांशीराम नगर के जिलाधीश ने इसे इस साल आयोजित करने के लिए बैठक बुलाई तो पटियाली ही क्या पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गयी। जब प्रशासन ने संसाधनों की कमी के चलते गैर सरकारी संस्थाओं से events sponsor करने के लए कहा तो सभी ने खुशी खुशी volunteer भी किया।

अनुभूति ने इस अवसर पर सूफियाना कलाम की एक शाम आयोजित करने की पेशकश की और प्रशासन ने उसे कुबूल भी कर लिया। तैयारियां शुरू हुईं। सूफियाना कलाम के मशहूर फ़नकार भारती बंधुओं से हमने गुज़ारिश की कि वो 25 April को पटियाली पधारें और पिछले बरस जो प्रस्तुति उन्होंने ताज महोत्सव में दी थी उस से भी ख़ूबसूरत compositions से पटियाली के अवाम को नवाजें।

जिस खुशी से उन्होंने हाँ की उस से तो हम सबके हर्ष की सीमा ही नहीं रही। सारे इन्तेज़ामात करा लिए गए। वो रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) से कैसे आगरा पहुंचेंगे , कहाँ विश्राम करेंगे और फिर दिल्ली हो कर कैसे उनकी वापसी होगी सब tie-up हो गया। जो निमंत्रण आप लोगों ने देखा वह भी छप गया। आस पास रहने वाले ख़ुसरो साहब के चाहने वाले इस में शिरक़त कर सकें इस लिए पोस्टर भी छपवाए गए।

और जब प्रोग्राम को शुरू होने में सिर्फ 24 घंटे बाकी थे हमें फ़ोन करके बताया गया कि प्रशासन ने प्रोग्राम निरस्त कर दिया है। इसकी कोई वजह भी नहीं बतायी गयी। ऐसी संवेदनहीनता। ख़ुसरो साहब का ऐसा अपमान। पूरे कस्बे और पूरे क्षेत्र की ऐसी तौहीन। अब हम इन्हें क्या कहें? ख़ुसरो साहब आप से ही कह सकते हैं कि हम वाकई शर्मिंदा हैं और आपके गुनेहगार हैं , हो सके तो माफ़ कर दीजियेगा। लेकिन आपकी शान में जो गुस्ताखी हुयी है उसे इंशा अल्लाह हम बहुत जल्द दुरुस्त करेंगे और इस से भी बेहतर कार्यक्रम आयोजित कर के दिखायेंगे।

अंत में बस इतना ही


ज़ुल्म की बात ही क्या, ज़ुल्म की औकात ही क्या
ज़ुल्म बस ज़ुल्म है आग़ाज़ से अंजाम तक
खून फिर खून है सो शक्ल बदल सकता है
ऐसी शक्लें कि मिटाओ तो मिटाए न बने
ऐसे शोले कि बुझाओ तो बुझाए न बने
ऐसे नारे कि दबाओ तो दबाये न बने।

Team Anubhuti

3 comments:

  1. यूहीं की हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क
    ना उनकी रीत नयी है ना अपनी रश्म नयी
    यूहीं हमने खिलाये हैं आग में फूल
    ना उनकी हार नयी है ना अपनी जीत नयी
    -फैज़ अहमद फैज़
    Notwithstanding the challenges, the crafted interuptions, the Team Anubhuti shall continue reaching the unreached and highly underserved- the victims of the politics of development.
    In the land of Khusro, the tribe shall grow...

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  2. Dear All ,

    waqai khusro mahotsav me jo kotahi prashashan ki taraf se barti gai wo bahut hi sharmindagi ki baat hai.....Ek aisi hasti jiska shumar pure Hind ke liye fakhr ki baat hai wahi unke ghar me unka yeh Apman afsosnak hai ......... main Rauf A Khan Apko Bhargain ke awam ki taraf se yakin dilata hu ki agar iske liye hamari jarurat jab bhi ho aap humko yaad kijiyega Inshallah Hum Aapke saath hoge....

    Regards
    Rauf A Khan
    +91 9725946946
    rauf.amu@gmail.com

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  3. "Hazaron saal Nargis ,apni be noori pe roti hai,
    Badi mushkil se hota hai, chaman mein deedawar paida."
    Khushnaseeb hai yeh sarzameen patiyali, ki Hazrat Ameer Khusro Rahmatullah Alaih jaisi Deedawar yahan paida huae.Born in Patiyali in 1253 AD ,the greatest ever genious and philosopher poet in Indian history,Hazrat Amir Khusro was a poet of Ganga Jamuni tehzeeb,inventor of Hindawi language popularly known as Urdu ,Qawwali,Sitar musical instrument,so many raagas and Raaginis was also an able Commander of Indian forces with the Delhi Sultans of the period and most enlightened Sufi saint of Chishti order and most close disciple of Hazrat Nizamuddin Aulia Rahmatullah alaih.It is said that Hazrat Amir Khusro reached to its zenith in perfection in whatever field he touched.Those who are responsible for the cancellation of the function in the honour of Hazrat Amir Khusro are very ignorant and unfortunate people dragging the legend into unnecessary political controversy.People and place are really honoured and blessed by paying respect to this Sufi saint and this most respected and celebrated personality of the world is not in any way indebted to anyone for arranging and cancellation of function for his name and fame.Those who really understand him will accept it and cannot stop paying respect to him anywhere anytime.
    On demise of his peer ,Hazrat Nizamuddin aulia following lines came upon his lips spontaneously;
    "Gori baithi sez par, mukh par dale kes,
    Chal khusro ghar aapne, saanjh hui chahu des."
    Aggrieved on demise of his peer, he could not bear the brunt of his separation and died in 1321 AD .He was buried near the Mazar of his peer.
    We are thankful to "Anubhuti Sewa Samiti" for their emotional attachment to Sufi Saint by saying "Khusro hum Sharminda hain" and pledge to arrange soon something in his honour.Hum bhi Duago hain ,ki khuda kare hum sab is azeem Shakhsiyat ki yaadon ko jald az jald taaza kar sakein.

    Mohd aslam Khan
    Bareilly

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