Tuesday, July 13, 2010

एक नई जगह, एक नया संवाद...

पटियाली लैब उत्तेजना से भरा है और चाहतों की इस दौड़ में वो आगे रहना चाहता है। कंप्यूटर  उन चाहतों का  एक खास केंद्र है जिसमें  आकर जीना हर कोई चाहता है हर कोई का मतलब लैब से जुड़ने वाला हर एक शख्स।
लड़का हो या लड़की सब अपनी बात रखने  का एक साधन ढ़ूढने निकल पड़े हैं ।

लड़कों का लैब से जुड़ना और लैब के साधनों की सूची से जुड़ना एक पल के लिए आसान लगा लेकिन लड़कियों के  घर से निकलने की एक ही वज़ह है एक खास तरह के प्रोग्राम से जुड़ना जिससे भविष्य की झल्कियों में वो अपने आप को खड़ा पायें ।


लैब के पहले दिन में हमारा आपसी संवाद कुछ इस तरह होता है-
हम सभी जानते हैं कि हम इस जगह से क्यों जुड़े हैं ?
सब – कंप्यूटर  सीखने के लिए।
मैं - कंप्यूटर हमारे काम करने के कई साधनों में  से एक साधन है, जिसके साथ हम रोज़ जुड़े रहेंगे लेकिन इसके साथ और भी कई तरह की एक्टिविटी  के साथ हम काम करेंगे।
सब – हम कंप्यूटर  सीखना चाहते हैं.
मैं- कंप्यूटर  भी सीखन-सिखाना चलेगा लेकिन कुछ और काम भी जुड़े हैं कंप्यूटर  के साथ जैसे कि साउंड, इमेज और लिखने की एक्टिविटी .

और ये सभी प्रक्रियांए कंप्यूटर  की दुनियां से होकर गुज़रेंगी जैसे कि किसी स्टोरी का एनीमिशन बनाना, किसी कहानी को कुछ फ्रेम में उतारकर गिम्प में डिज़ाइन करना, अपनी लिखी किसी भी बात , संवाद या कहानी को कंप्यूटर  पर ही टाइप किया जाएगा और बहुत से  फोर्म को भी हम सब मिलकर कंप्यूटर पर ही डिज़ाइन करेंगे।


जिससे कि हम खुद को पूर्ण तरीके  से अपने आने वाले कल में खड़ा पा सकें। हम खुद के साथ काम करेंगे, खुद की सोच से खेलेंगे, नए ज़रियों से अपने आपको अपने आस-पास और समाज में पेश करेंगे।

लैब से जुड़े ज्यादातर लड़के-लड़कियां 10-12 क्लास के स्टूडेंट हैं और कुछ 8-9 क्लास के।
3 बच्चे भी है इस ग्रुप से जुड़े हुए जो माहौल की गरमाई में भी हंसी के गोले मारते रहते हैं।

लैब चलने का सिलसिला 1 जुलाई से शुरू हुआ, वैसे में यहां पिछले एक महीने से हूँ.  जिसमें मैने लोगों से बातचीत और समझने-समझाने के कई नए सिलसिलों से जुड़ना बेहतर  समझा.  गर्मियों  में लैब की रोज़मर्रा में मैं खुद को अकेला पाता था.  एक साथी और है इस अकेलेपन को बांटने वाला ( विमल ) हम दो लोग लैब में बैठकर अकसर ये सोचते थे कि लैब की शुरूआत कहाँ  से और कैसे करें ? क्योंकि बच्चे तो स्कूल शुरू होने के बाद ही आएंगे। तो हम दोनों हमेशा बच्चों को ढूढने निकल पड़ते थे, कभी किसी जानकार डॉक्टर से बात होती तो कभी इलाके के जानकार शख्स से कि हमारे साथ घर-घर चलके बच्चों को लैब से जुड़ने का न्यौता दें और समझाएं. 

अंशुमान भाई  ने भी पटियाली के लोगो से ये अपील की थी कि सैफू एक खास तरह की जगह  को पटियाली मे बना रहे हैं जिसमें आप सभी के बच्चों की इन्हे जरूरत पड़ेगी। उनके साथ कई नई एक्टिविटी  पर काम करेंगे, नई पहचान और टेलेंट को उभारेंगे।


यहां सभी को लिखने की समझ है लेकिन लिखें क्या उसकी समझ अभी खाली है।
और मेरा काम तो इसी सवाल से शुरू होता है - मैने शुरूआत में हाथों को लेखन की ओर लाने के लिए सवालों से खेलने की सोची कुछ छोटे सवालों की सूची बनाई और माहौल में फैकना शुरू किया ।

1 हम अपने आस-पास को किस नज़र से देखते हैं ?
2 घर और बाहर के माहौल में  क्या फर्क महसूस होता है ?
3 आवाज़ों को सुनकर माहौल की कल्पना क्या होगी ?
4 छत या घर की खिड़की से किसी एक माहौल को देख कर लिखना, जैसे- बारात या लड़ाई-झगड़े का माहौल।
5 अपने आस-पास की किसी जानकार छवि के बारे में लिखना जिसे सब जानते हो तुम भी।
6 अपने दोस्तों की सूची बनाओ और किसी एक खास दोस्त के बारे में लिखो कि वो खास क्यों है ?
7 वो एक दिन जिसे आप हमेशा याद रखते हो और क्यूं ?
8 गलियों से गुज़रते वक़्त किन-किन चीज़ों को आप अपनी जगह की पहचान का हिस्सा बना लेते हो ?
9 किसी से आप आकर्षित कब होते होते हो ? आकर्षित होने की  वजह को लिखना।
10 वो कौन सा माहौल है जिसमें  आप खुद को हर बार देखना चाहते हो और क्यूं ?

सबने लिखने की शुरूआत को बहुत ही मज़े के साथ लिया और लिखा भी सुनने-सुनाने की जब बात आई तो सबकी नज़रों और चहरों के देख कर मुझे अपना जे-पी लैब याद आ गया- मेरा वो पहला दिन जब मैंने आवाज़ो को सुनकर लिखा था, उस झिझक का फिर एक बार सामना करना पड़ा और जैसे मुझे उत्सुक किया गया था मैंने भी वही किया, थोड़ा ज़ोर डालते हुए।

सुनने के बाद बड़ा मज़ा आया सबके लेखन में छोटी-छोटी कुछ ऎसी  झलकियां थी जो माहौल को एक-दम से अपना बना देतीं  और सब एक-दूसरे पर हंसने लगते।

लिखने के इस सिलसिले के साथ हम आगे बढ़ते  रहेंगे और नयी सोच और संवाद को आपस में बाटते रहेंगे.


इसी बात पर एक शेर अर्ज़ करता हूँ


जिंदगी के लम्हों को बिताना सीख लिया,
मिला कोई जब तो बतियाना सीख लिया,
परवाह अगर की तो भुलाना भी सीख लिया,
जीना किसे कहते हैं सीख पाए न हम, लेकिन जीना सीख लिया।

सैफू
for 
Team Anubhuti 




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