इस यात्रा में बहुत साथी हैं और इसी वजह से ये सुहानी और बर्दाश्त करने लायक है. इसमें एक आदमी की कमी बहुत शिद्दत से अखरती है. वो कोई बड़ा आदमी नहीं था. लेकिन अगर आज वो हमारे साथ होता तो बात ही कुछ और होती।
बहुत से साथी उसे जानते हैं बहुत से नहीं भी . मनोज भाई आपको यकीनन याद होगा और मुझे विश्वास है आप सहमत होंगे कि अगर आज भूरे होता तो मज़ा आ जाता।
भूरे उसका असली नाम नहीं था। हमें असली नाम पूछने में और उसे बताने में पसीने आ गए थे. मनोज भाई की बहुत जिद के बाद उसने बताया था कि उसका असली नाम शीतल प्रसाद है , साथ में यह भी जोड़ा कि अब सब भूरे ही कहते हैं . और फिर वह हम सबके लिये भी भूरे ही हो गया .
भूरे गाड़ी चलाता था। अपने फ़न में तो वो माहिर था ही इंसान भी बहतरीन था . हमेशा उसे मुस्कुराते ही देखा . कभी कोई शिकायत नहीं। खाना न मिल सका तो भी कोई परवाह नहीं। बच्चोँ की तरह निष्छल। कई बार तो भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहानी मिलू के बहाने उसको ही सुननी होती थी।
दिल्ली की हर वो जगह जहाँ हमें जाना होता था उसे पता थी। दिल्ली को उसने और हमने मिल के ही जाना था। अगर आज बहुत से रास्ते पता हैं तो ये भूरे की वजह से ही है .
एक दिन भूरे को चेस्ट पेन की शिकायत हुई तो डॉक्टर को दिखाया गया। तब हम लोग दिल्ली में नहीं थे. बाद में जब हम दिल्ली आये और चेक अप कराया तो पता लगा कि Heart की problem है. Angioplasty करानी होगी। सबके संयुक्त और छोटू ( करुणेन्द्र ) के विशेष प्रयास से AIIMS में ये भी हो गया। और लगा कि सब ठीक हो गया।
लेकिन कुछ साल बाद ही one morning he did not get up. It was 6th of January. And since than we have been struggling to learn to live with out him.
अनुभूति का पटियाली सफ़र उसके जाने के बाद ही शुरू हुआ। अगर आज भूरे होता तो जिस तरह का काम हम लोग कर रहे हैं उसे देख कर बहुत खुश होता।
हर यात्रा में तुम्हारी याद साथ रहती है और भले ही तुम हमें छोड़ कर चले गए हमारे संघर्ष का अभिन्न हिस्सा तुम हमेशा रहोगे. दोस्त भूरे तुम हमेशा याद किये जाओगे.
अनुभूति टीम
बहुत से साथी उसे जानते हैं बहुत से नहीं भी . मनोज भाई आपको यकीनन याद होगा और मुझे विश्वास है आप सहमत होंगे कि अगर आज भूरे होता तो मज़ा आ जाता।
भूरे उसका असली नाम नहीं था। हमें असली नाम पूछने में और उसे बताने में पसीने आ गए थे. मनोज भाई की बहुत जिद के बाद उसने बताया था कि उसका असली नाम शीतल प्रसाद है , साथ में यह भी जोड़ा कि अब सब भूरे ही कहते हैं . और फिर वह हम सबके लिये भी भूरे ही हो गया .
भूरे गाड़ी चलाता था। अपने फ़न में तो वो माहिर था ही इंसान भी बहतरीन था . हमेशा उसे मुस्कुराते ही देखा . कभी कोई शिकायत नहीं। खाना न मिल सका तो भी कोई परवाह नहीं। बच्चोँ की तरह निष्छल। कई बार तो भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहानी मिलू के बहाने उसको ही सुननी होती थी।
दिल्ली की हर वो जगह जहाँ हमें जाना होता था उसे पता थी। दिल्ली को उसने और हमने मिल के ही जाना था। अगर आज बहुत से रास्ते पता हैं तो ये भूरे की वजह से ही है .
एक दिन भूरे को चेस्ट पेन की शिकायत हुई तो डॉक्टर को दिखाया गया। तब हम लोग दिल्ली में नहीं थे. बाद में जब हम दिल्ली आये और चेक अप कराया तो पता लगा कि Heart की problem है. Angioplasty करानी होगी। सबके संयुक्त और छोटू ( करुणेन्द्र ) के विशेष प्रयास से AIIMS में ये भी हो गया। और लगा कि सब ठीक हो गया।
लेकिन कुछ साल बाद ही one morning he did not get up. It was 6th of January. And since than we have been struggling to learn to live with out him.
अनुभूति का पटियाली सफ़र उसके जाने के बाद ही शुरू हुआ। अगर आज भूरे होता तो जिस तरह का काम हम लोग कर रहे हैं उसे देख कर बहुत खुश होता।
हर यात्रा में तुम्हारी याद साथ रहती है और भले ही तुम हमें छोड़ कर चले गए हमारे संघर्ष का अभिन्न हिस्सा तुम हमेशा रहोगे. दोस्त भूरे तुम हमेशा याद किये जाओगे.
अनुभूति टीम
यकीनन ये सही मायने में श्रदांजली.मैं भूरे भाई से मिला तो नहीं, सुना बहुत.
ReplyDeleteभूरे भाई की श्रदांजली लिखने वाले की महानता जिसके लिए इंसान अहम् है, रिश्ते मायने रखते हैं, रुतबा , कद और कीमत नहीं.
.....भाई आप सलामत रहें!!