Friday, June 04, 2010

पटियाली में राहत...


सुबह की चुभती धूप के बाद ,दोपहर को दौड़ती-भागती हवाओं ने इशारा कर दिया था कि अब राहत बहुत दूर नहीं। लोगों की दुआओं और उम्मीदों को पूरा होने में अब ‌‌‌वक्त कम ही लगेगा, हवाओं के साथ बातों का सिलसिला जो एक दूसरे तक बड़ी तेज़ी से चल पड़ा है। किसी को लगता है कि ये तेज़ चलती हवाएं सुकून लाएंगी तो किसी को पहले से ही मालूम है कि आज सिर्फ हल्का पानी पड़ेगा, जिससे कि भभका उठेगा।

शाम होते-होते कई घंटों के इंतज़ार के बाद तेज़ चलती हवाओं में लिपटी कुछ बारिश की बूंदों ने पटियाली में दस्तक दी। लोगों ने आहें भरीं और ऊपर नज़रें उठाकर सुकून की साँसें लीं लेकिन ये सुकून चंद लम्हों का ही था।

हवाओं में ठंडक थी इसलिए हर झोंका ये फुसफुसाता लगता कि "आज बारिश होगी"। सुबह से मौसम कहना चाह रहा है कि चप्पलें पहन लो और घर निकल लो। वरना कहीं ये न हो कि पानी पड़े और तुम छींकें मारते घूमो ।

सड़कों पर चलती हर गाड़ी (जीप) ने अपने सिर पर तिरपाल का अंगोछा ओढ़ लिया है। उम्मीद के साथ बनी हर तस्वीर पर छीटों का पड़ना जरूरी लगने लगा है जिससे कि उस तस्वीर की शक्ल भी भीगी -भीगी सी लगे।

रात का अंधेरा छाते ही तेज़ हवाओं के साथ फिर ऐसा लगा जैसे कोई सोते हुए को जगाने के लिए पानी की छींटें मारता है जैसे किसी प्यासे को कुछ बूंदों का सहारा दिया जाता है, जिससे कि जान में जान बनी रहे। लेकिन यहां का आलम चाहता है कि बारिश खूब जम कर हो, लोगों को हर तरीके से राहत मिले- खेती भी अच्छी हो और काम करने में बदन भी न टूटे। पटियाली में बारिश के साथ-साथ पेड़ों पर लगे आमों की भी बारिश हो जाएगी क्योंकि अब आम पुर चुका है बस अब वो पानी मांग रहा है पकने के लिए।

खुदा की नेमत का इंतज़ार तो हर किसी को है।
किसी को मिला पानी, तो धूप किसी को है।

Anubhuti Team

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